Tuesday, February 17, 2009
आतंक का नया चेहरा
आखिर कब जागेगी हमारी आवाम, आखिर कब होगा सबेरा, हम किस-किस को जिम्मेंदार कहें इस आतंक का । भारत में जहाँ एक ओर हिन्दू , मुस्लिम, सिख, ईसाई को भाई-भाई का दर्जा दिया जाता है वहीं दूसरी ओर मुस्लिम कौम को श़क की नज़र से देखा जाता है। यदि पकड़ा जाने वाला आतंकी मुस्लिम है तो सभी मुस्लिम को शक के दायरें से देखतें हैं। यदि पकड़ा जाने वाला व्यक्ति हिन्दू होता है तो उसे आतंकवादी क्यों नहीं कहा जाता हैं। सभी धर्म हमें अमन और शान्ति की प्रेरणा देते है। जब कि आतंकी का ना तो कोई जाति होती है और ना हीं उसका कोई धर्म । भारत हमेशा से शान्तिप्रिय और भाईचारें का देश रहा है पर अब ना तो भारत शान्तिप्रिय देश रह गया है और ना हीं भाईचारें का। अब भाईचारा और शान्ती तो हमारे राजनेताओं की भेंट चढ़ गया है।
Friday, February 6, 2009
राजनीति में फाइनल का आग़ाज
लोकसभा का चुनावी बिगुल बज चुका है। सभी चुनावी पार्टियाँ अपने-अपने तरीकों से चुनाव रूपी युद्ध की तैयारियों में जुट गयीं हैं। चुनाव होने में अभी कुछ समय बाकी हैं ऐसे में सरगर्मी अगर राजनीतिक दलों के सिर चढ़ कर बोलने लगे तो यह साधारण सी बात है ।
विधानसभा चुनावों की मनोदशा के लिहाज से आगामी चुनाव एक संघर्षपूर्ण स्थिति को बयां करती है। क्यों कि विधान सभा चुनावों को आगामी लोक सभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा था। 8 दिसम्बर को जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त शेष पाँच विधान सभाओं के चुनाव परिणाम प्राप्त हो गये थे और जम्मूकश्मीर की विधान सभा का चुनाव परिणाम 28 दिसम्बर, 2008 को प्राप्त हुआ। इन चुनावों में चार राज्यों में कांग्रेस और दो राज्यों में भाजपा की सरकार बनी। राजस्थान और दिल्ली में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
इन चुनावीं परिणामों ने कई मिथक तोड़े और पूर्वधारणाओं को ख़ारिज किया है। हर बार की तरह इस बार भी तथाकथित चुनावी पंडितों एवं विश्लेषकों के पूर्वानुमान ध्वस्त हुए हैं। विधान सभा के चुनावी परिणामों में भले ही 3-2 से कांग्रेस का बोलबाला रहा हो, लेकिन लोकसभा चुनावों के लिहाज से भाजपा और काँग्रेस के बीच एक काटें की टक्कर थी। दिल्ली में चुनाव मुम्बई हमलों के पश्चात सम्पन्न हुए। किन्तु आतंकवाद एवं आन्तरिक सुरक्षा का मुद्दा मतदाताओं पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सका। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार का एजेण्डा ही कामयाब हुआ। इससे यह पता चलता कि मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत छवि एवं सरकार के अच्छे कामकाज ने सत्ता विरोधी पहलू की अवराधणा को नकार दिया है और इससे यह निष्कर्ष सामने आया कि विधान सभा चुनावों में आतंकवाद , महँगाई, आर्थिक संकट जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के बज़ाय मतदाता स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा जोर देते नज़र आयें हैं।
बसपा की सोशल इंजीयरिंग की गणित उ0प्र0 के बाहर ज्यादा कामयाब होती नहीं दिखती है लेकिन विधान सभा के चुनावी दगंल में बसपा ने भाजपा और कांग्रेस की नींद उड़ा दी थी। अब दोनों ही दलों को भय है कि बसपा उन्हें कई सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है। इसी के चलते बसपा के साथ तालमेल के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही आतुर दिखाई दे रहे हैं।
एक बार फिर से कयासबाजी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा है और नए सिरें से राजनीतिक पंडित पांच साल तक देश की दिशा तय करने वालों के दलों के भविष्य का अनुमान लगाने में जुट गए हैं। लेकिन यह तय है कि आन्तरिक गुटबाजी एवं संगठन के स्तर पर कुप्रबन्धन की शिकार पार्टियों की पराजय निश्चित है। राजनीति की शतरंज पर मोहरे बिछाकर बाज़ी कौन मारेगा, ये तो अब वक्त ही बतायेगा।
विधानसभा चुनावों की मनोदशा के लिहाज से आगामी चुनाव एक संघर्षपूर्ण स्थिति को बयां करती है। क्यों कि विधान सभा चुनावों को आगामी लोक सभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा था। 8 दिसम्बर को जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त शेष पाँच विधान सभाओं के चुनाव परिणाम प्राप्त हो गये थे और जम्मूकश्मीर की विधान सभा का चुनाव परिणाम 28 दिसम्बर, 2008 को प्राप्त हुआ। इन चुनावों में चार राज्यों में कांग्रेस और दो राज्यों में भाजपा की सरकार बनी। राजस्थान और दिल्ली में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
इन चुनावीं परिणामों ने कई मिथक तोड़े और पूर्वधारणाओं को ख़ारिज किया है। हर बार की तरह इस बार भी तथाकथित चुनावी पंडितों एवं विश्लेषकों के पूर्वानुमान ध्वस्त हुए हैं। विधान सभा के चुनावी परिणामों में भले ही 3-2 से कांग्रेस का बोलबाला रहा हो, लेकिन लोकसभा चुनावों के लिहाज से भाजपा और काँग्रेस के बीच एक काटें की टक्कर थी। दिल्ली में चुनाव मुम्बई हमलों के पश्चात सम्पन्न हुए। किन्तु आतंकवाद एवं आन्तरिक सुरक्षा का मुद्दा मतदाताओं पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सका। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार का एजेण्डा ही कामयाब हुआ। इससे यह पता चलता कि मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत छवि एवं सरकार के अच्छे कामकाज ने सत्ता विरोधी पहलू की अवराधणा को नकार दिया है और इससे यह निष्कर्ष सामने आया कि विधान सभा चुनावों में आतंकवाद , महँगाई, आर्थिक संकट जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के बज़ाय मतदाता स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा जोर देते नज़र आयें हैं।
बसपा की सोशल इंजीयरिंग की गणित उ0प्र0 के बाहर ज्यादा कामयाब होती नहीं दिखती है लेकिन विधान सभा के चुनावी दगंल में बसपा ने भाजपा और कांग्रेस की नींद उड़ा दी थी। अब दोनों ही दलों को भय है कि बसपा उन्हें कई सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है। इसी के चलते बसपा के साथ तालमेल के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही आतुर दिखाई दे रहे हैं।
एक बार फिर से कयासबाजी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा है और नए सिरें से राजनीतिक पंडित पांच साल तक देश की दिशा तय करने वालों के दलों के भविष्य का अनुमान लगाने में जुट गए हैं। लेकिन यह तय है कि आन्तरिक गुटबाजी एवं संगठन के स्तर पर कुप्रबन्धन की शिकार पार्टियों की पराजय निश्चित है। राजनीति की शतरंज पर मोहरे बिछाकर बाज़ी कौन मारेगा, ये तो अब वक्त ही बतायेगा।
Tuesday, February 3, 2009
चंद्रयान मिशन का टशन
चाँद पर पहुँचने की ख्वाहिश किसके दिल में उज़ागर नहीं होती है। चाँद तो मानव मन के लिए हमेशा से कौतूहल का विषय रहा है। साहित्यकार इसे सौंदर्य का प्रतीक मानते है तो वैज्ञानिक इसे अन्य ग्रहों उपग्रहों की तरह रहस्य और रोमांच से भरी एक अलग दुनिया। इसी दुनिया की खोज में भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को सुबह 6 बज़कर 21 मिनट पर एक इतिहास रचा। भारत ने अपने चंद्रयान-1 मिशन को पंख लगाकर उसे एक नयी दिशा दे दी। इसी के साथ भारत - रूस, अमेरिका, ज़ापान चीन आदि की क़तार में ऐसे छठे देश के रूप में आ खड़ा हुआ है जिनके चाँद पर मिशन गए हैं। परन्तु भारत एक और ऐतिहासिक शिखर के साथ ऐसा चौथा देश भी बन गया जिसका परचम चाँद पर लहराया।
भारत अपने चाँद पर पहुँचने के सपने को पूरा कर अन्य देशों के लिए चर्चा, चिंता और चौकानें का सबब बन चुका है। भारत की इस ऐतिहासिक कामयाबीं पर चीन, अमेरिका, पाकिस्तान जैसें अन्य कई देश चकित हुए हैं। भारत की इस सफलता पर चीनी अंतरिक्ष विज्ञानी सवाल करने में मश़गूल हैं। शायद उनकों यह अवगत कराना होगा कि हाल ही में दुनिया की जानी-मानी टेक्नोलाजी मैनेजमेंट फर्म फ्यूट्रान द्वारा जारी ग्लोबल स्पेस कंप्टीटिवनेस इंडेक्स कई प्रमुख वर्गों (देश की सरकार, मानव पूंजी और इंडस्ट्री) के आधार पर तैयार की गई है। इन आधारों के द्वारा तैयार की गई रैकिंग में भारत, चीन से अंशमात्र ही पीछे है। 17.88 अंको के साथ चीन चौथें जब कि 17.52 अंको के साथ भारत पांचवें स्थान पर है। लेकिन अन्य कई प्रमुख वर्गों में भारत ने चीन के सपने को तार-तार कर दिया है। प्रमुख वर्गों के आधार मिलें अंको में देश की सरकार पर मिलें 10.58 अंक के साथ भारत चीन से एक पायदान ऊपर है। भारत चौथें पायदान पर है, जब कि चीन 10.44 अंक के साथ पाँचवें पायदान पर है। इसी तरह स्पेस इंडस्ट्री में भी चीन भारत से एक पायदान नीचे है। इस वर्ग में भारत 4.65 अंक के साथ मजबूती से चौथें स्थान पर जमा है जब कि चीन को 4.33 अंको के साथ पाँचवें स्थान पर ही संतोष करना पड़ रहा है। भारत ने अंतरिक्ष पर अपने पैर जमाने के लिए बड़े-बड़े सपने देखें हैं। इस मिशन के लिए भारत ने अपनी कोशिशों को चीन से अधिक प्रभावशाली बनाया है। क्यों कि चंद्रयान-1 की लागत चीन के पहले मून मिशन की तुलना में आधी से भी कम है। शीर्ष दस देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर तैयार की गई सूची में अमेरिका 90 से ज्यादा सर्वाधिक अंको के साथ सभी वर्गों में अव्वल है। परन्तु भारत की यह गौरवपूर्ण कामयाबी, अमेरिका के लिए गौर करने का विषय बन चुका है कि कहीं अमेरिका चाँद के बारें अपनी जानकारियाँ औंर भविष्य की योजना को लेकर पिछड़ तो नहीं जायेगा। यह सवाल अमेंरिका के लिए बल्कि पाकिस्तान और जापान के लिए पहेली बन चुका है। भारत के इस अभियान को लेकर पाकिस्तान के सभी अख़बारों व टीवी चैनलों में विभिन्न कोणों से इसका विस्त्रत विश्लेषण भी किया गया। पाकिस्तान में एक अखबार के माध्यम से पाकिस्तानी सरकार को आगाह किया गया और उसे एक लंबी फेहरिस्त सौंपी गई कि अब पाकिस्तान सरकार इस नींद से जाग जायें अन्यथा भारत विज्ञान और तकनीकि के मामलें में पाकिस्तान से इतना
आगे निकल जायेगा कि वह लाचार होकर घुटनों के बल बैठ देखता रह जायेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत की इस ऐतिहासिक कामयाबी पर सभी देश उसे अनेकों बधाईयाँ दे रहे हैं परन्तु सभी देश नींद से जागते हुए भारत की इस कामयाबी को सबक सीखाने वाला मान रहे हैं। भारत का यह सबक शायद ही अब कोई भुला पाए।
भारत अपने चाँद पर पहुँचने के सपने को पूरा कर अन्य देशों के लिए चर्चा, चिंता और चौकानें का सबब बन चुका है। भारत की इस ऐतिहासिक कामयाबीं पर चीन, अमेरिका, पाकिस्तान जैसें अन्य कई देश चकित हुए हैं। भारत की इस सफलता पर चीनी अंतरिक्ष विज्ञानी सवाल करने में मश़गूल हैं। शायद उनकों यह अवगत कराना होगा कि हाल ही में दुनिया की जानी-मानी टेक्नोलाजी मैनेजमेंट फर्म फ्यूट्रान द्वारा जारी ग्लोबल स्पेस कंप्टीटिवनेस इंडेक्स कई प्रमुख वर्गों (देश की सरकार, मानव पूंजी और इंडस्ट्री) के आधार पर तैयार की गई है। इन आधारों के द्वारा तैयार की गई रैकिंग में भारत, चीन से अंशमात्र ही पीछे है। 17.88 अंको के साथ चीन चौथें जब कि 17.52 अंको के साथ भारत पांचवें स्थान पर है। लेकिन अन्य कई प्रमुख वर्गों में भारत ने चीन के सपने को तार-तार कर दिया है। प्रमुख वर्गों के आधार मिलें अंको में देश की सरकार पर मिलें 10.58 अंक के साथ भारत चीन से एक पायदान ऊपर है। भारत चौथें पायदान पर है, जब कि चीन 10.44 अंक के साथ पाँचवें पायदान पर है। इसी तरह स्पेस इंडस्ट्री में भी चीन भारत से एक पायदान नीचे है। इस वर्ग में भारत 4.65 अंक के साथ मजबूती से चौथें स्थान पर जमा है जब कि चीन को 4.33 अंको के साथ पाँचवें स्थान पर ही संतोष करना पड़ रहा है। भारत ने अंतरिक्ष पर अपने पैर जमाने के लिए बड़े-बड़े सपने देखें हैं। इस मिशन के लिए भारत ने अपनी कोशिशों को चीन से अधिक प्रभावशाली बनाया है। क्यों कि चंद्रयान-1 की लागत चीन के पहले मून मिशन की तुलना में आधी से भी कम है। शीर्ष दस देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर तैयार की गई सूची में अमेरिका 90 से ज्यादा सर्वाधिक अंको के साथ सभी वर्गों में अव्वल है। परन्तु भारत की यह गौरवपूर्ण कामयाबी, अमेरिका के लिए गौर करने का विषय बन चुका है कि कहीं अमेरिका चाँद के बारें अपनी जानकारियाँ औंर भविष्य की योजना को लेकर पिछड़ तो नहीं जायेगा। यह सवाल अमेंरिका के लिए बल्कि पाकिस्तान और जापान के लिए पहेली बन चुका है। भारत के इस अभियान को लेकर पाकिस्तान के सभी अख़बारों व टीवी चैनलों में विभिन्न कोणों से इसका विस्त्रत विश्लेषण भी किया गया। पाकिस्तान में एक अखबार के माध्यम से पाकिस्तानी सरकार को आगाह किया गया और उसे एक लंबी फेहरिस्त सौंपी गई कि अब पाकिस्तान सरकार इस नींद से जाग जायें अन्यथा भारत विज्ञान और तकनीकि के मामलें में पाकिस्तान से इतना
आगे निकल जायेगा कि वह लाचार होकर घुटनों के बल बैठ देखता रह जायेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत की इस ऐतिहासिक कामयाबी पर सभी देश उसे अनेकों बधाईयाँ दे रहे हैं परन्तु सभी देश नींद से जागते हुए भारत की इस कामयाबी को सबक सीखाने वाला मान रहे हैं। भारत का यह सबक शायद ही अब कोई भुला पाए।
Monday, February 2, 2009
बच्चों का बदलता स्वरूप
अपराधों की राजधानी कही जाने वाली दिल्ली में अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। लगातार बढ़ रहे अपराधों से कोई भी व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित नहीं समझ पा रहा है। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार जैसे कई बड़े अपराध दिल्ली की सड़को पर रोज़ाना हो रहे हैं। शाम होते ही लोंग अपने दफ्तरों से निकल कर घरों की तरफ़ भागना उचित समझते हैं।
लगातार बढ़ रहे अपराधों में एक किरदार है छोटे मासूम बच्चों का। भूख से बिलखते ये बच्चें अपना पेट भरने के लिए सड़को पर आवारा घूम कर भीख़ माँगते है या फिर अपराधों की तरफ़ अपना रुख कर लेते हैं। ये छोटे बच्चें अपना पेट भरने के लिए बड़े-बड़े अपराधों में शामिल तो हो जाते हैं परन्तु ये अपनी ज़िन्दगी को पूर्ण रूप से समझ नहीं पाते हैं। मासूमों के जिन हाथों में खिलौने और किताबें होनी चाहिए, उन हाथों में या तो हथियार या फिर भीख़ माँगने का कटोरा होता है। इन बच्चों को तो लगता है कि इनके हाथों से किस्मत की रेखा पूर्ण रूप से मिट चुकी है। अब इन बच्चों का भविष्य तो वर्तमान के पन्नों में सिमट कर रह गया है। जब हमने उन मासूम बच्चों से पूछा कि तुम एक दिन में कितना पैसा कमा लेते हों, तो उनका जवाब था कि “जब हमें भूख लगती है तब हम भीख़ माँग कर अपना पेट भर लेते हैं। हमें एक दिन में 15-20 रुपये मिल जाते हैं।”
दिल्ली की सड़को पर घूम रहे इन बच्चों के लिए प्रशासन ने क्या प्रावधान बनायें हें शायद ये नहीं जानते हैं। परन्तु ये बच्चें ऐसे ही तंग गलियों या सड़कों पर भटक कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। यह देखकर तो ऐसा लगता है कि सरकार ने बालश्रम के लिए कानून तो बना दिये हैं। पर शायद इस कानून ने मासूमों को दर-दर भटकने पर मज़बूर कर दिया है।
लगातार बढ़ रहे अपराधों में एक किरदार है छोटे मासूम बच्चों का। भूख से बिलखते ये बच्चें अपना पेट भरने के लिए सड़को पर आवारा घूम कर भीख़ माँगते है या फिर अपराधों की तरफ़ अपना रुख कर लेते हैं। ये छोटे बच्चें अपना पेट भरने के लिए बड़े-बड़े अपराधों में शामिल तो हो जाते हैं परन्तु ये अपनी ज़िन्दगी को पूर्ण रूप से समझ नहीं पाते हैं। मासूमों के जिन हाथों में खिलौने और किताबें होनी चाहिए, उन हाथों में या तो हथियार या फिर भीख़ माँगने का कटोरा होता है। इन बच्चों को तो लगता है कि इनके हाथों से किस्मत की रेखा पूर्ण रूप से मिट चुकी है। अब इन बच्चों का भविष्य तो वर्तमान के पन्नों में सिमट कर रह गया है। जब हमने उन मासूम बच्चों से पूछा कि तुम एक दिन में कितना पैसा कमा लेते हों, तो उनका जवाब था कि “जब हमें भूख लगती है तब हम भीख़ माँग कर अपना पेट भर लेते हैं। हमें एक दिन में 15-20 रुपये मिल जाते हैं।”
दिल्ली की सड़को पर घूम रहे इन बच्चों के लिए प्रशासन ने क्या प्रावधान बनायें हें शायद ये नहीं जानते हैं। परन्तु ये बच्चें ऐसे ही तंग गलियों या सड़कों पर भटक कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। यह देखकर तो ऐसा लगता है कि सरकार ने बालश्रम के लिए कानून तो बना दिये हैं। पर शायद इस कानून ने मासूमों को दर-दर भटकने पर मज़बूर कर दिया है।
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