Monday, February 2, 2009

बच्चों का बदलता स्वरूप

अपराधों की राजधानी कही जाने वाली दिल्ली में अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। लगातार बढ़ रहे अपराधों से कोई भी व्यक्ति अपने आप को सुरक्षित नहीं समझ पा रहा है। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार जैसे कई बड़े अपराध दिल्ली की सड़को पर रोज़ाना हो रहे हैं। शाम होते ही लोंग अपने दफ्तरों से निकल कर घरों की तरफ़ भागना उचित समझते हैं।
लगातार बढ़ रहे अपराधों में एक किरदार है छोटे मासूम बच्चों का। भूख से बिलखते ये बच्चें अपना पेट भरने के लिए सड़को पर आवारा घूम कर भीख़ माँगते है या फिर अपराधों की तरफ़ अपना रुख कर लेते हैं। ये छोटे बच्चें अपना पेट भरने के लिए बड़े-बड़े अपराधों में शामिल तो हो जाते हैं परन्तु ये अपनी ज़िन्दगी को पूर्ण रूप से समझ नहीं पाते हैं। मासूमों के जिन हाथों में खिलौने और किताबें होनी चाहिए, उन हाथों में या तो हथियार या फिर भीख़ माँगने का कटोरा होता है। इन बच्चों को तो लगता है कि इनके हाथों से किस्मत की रेखा पूर्ण रूप से मिट चुकी है। अब इन बच्चों का भविष्य तो वर्तमान के पन्नों में सिमट कर रह गया है। जब हमने उन मासूम बच्चों से पूछा कि तुम एक दिन में कितना पैसा कमा लेते हों, तो उनका जवाब था कि “जब हमें भूख लगती है तब हम भीख़ माँग कर अपना पेट भर लेते हैं। हमें एक दिन में 15-20 रुपये मिल जाते हैं।”
दिल्ली की सड़को पर घूम रहे इन बच्चों के लिए प्रशासन ने क्या प्रावधान बनायें हें शायद ये नहीं जानते हैं। परन्तु ये बच्चें ऐसे ही तंग गलियों या सड़कों पर भटक कर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं। यह देखकर तो ऐसा लगता है कि सरकार ने बालश्रम के लिए कानून तो बना दिये हैं। पर शायद इस कानून ने मासूमों को दर-दर भटकने पर मज़बूर कर दिया है।

1 comment:

  1. vikash je apne to jo likha hai wo to sahi but aap child labour kai liyai kuch kar rahe hai...........likhne se kam nahi chalega......

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