दुनिया कितनी बदल चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता कि पहले आर्थिक मंदी का प्रभाव लोगों पर क़हर बनकर टूटा, उसके बाद आउटसोर्सिंग पर रोक लगने से आई0टी0 क्षेत्र के लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। पहले आर्थिक संकट ने विकसित देशों को विकासशील देशों पर सीधे निर्भर होने के लिये मजबूर कर दिया था, पर अब आउटसोर्सिंग ने विकासशील देशों की तो, कमर ही तोड़ दी।
अमेरिका बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से पहले दुनिया को वैश्वीकरण तथा आर्थिक उदारीकरण का उपदेश देता था। विश्वव्यापी मंदी के बावजूद भारत में तमाम अवसर मौजूद थे”,ये मानना था, स्टाफिंग सेवायें देने वाली ग्लोबल फर्म ‘मैनपावर’ का। लेकिन मंदी के कहर ने तो विकसित और विकासशील देशों की तस्वीर को आईना दिखा दिया।
भारत तथा दूसरे विकासशील देश जितने ही अपने दरवाजे दूसरों के लिए खोलते जाते थे, उतनी ही वैश्वीकरण तथा आर्थिक उदारीकरण की मांग अमेरिका की ओर से बढ़ती जाती थी। वही अमेरिका अपने दरवाजे दुनिया के लिए बंद करता जा रहा है। अभी तक अमेरिका तथा पश्चिम की अनेक कंपनियां अपना कुछ तकनीकि काम विकासशील देशों की कंपनियों को सौंप देती थी क्योंकि विकसित देशों के मुकाबले यहां श्रम सस्ता है। इससे भारत के, विशेष सूचना टेक्नोलॉजी से जुड़े, युवाओं को बहुत लाभ हो रहा था जिन्हें बड़े पैमाने पर अच्छे रोज़गार मिले हुए थे। लेकिन इससे कहीं ज्यादा फ़ायदा अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों की कंपनियों को था जो सस्ते श्रम के आधार अपने क्षेत्र में प्रतियोगी बनी रहती थीं और अपने यहां भी रोज़गार पैदा करती थीं लेकिन बराक ओबामा ने आउटसोर्सिंग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिनेशन में कर दी है। अब आउटसोर्स करने वाली कंपनियों के करों में रियायत नहीं मिलेगी लेकिन आर्थिक मंदी से जुझता अमेरिका अधिक तनख्वाहों पर अपने लोगों को रोज़गार देगा, उससे ये कंपनियां दुनिया में कितनी प्रतियोगी बनी रहेंगी, यह कहना मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि बुश प्रशासन पर आउट सोर्सिंग खत्म करने का दबाव नहीं था उसने अन्त में कदम पीछे हटा लिए थे। बहरहाल, ओबामा का यह फैसला भारतीय युवाओं के आई.टी. स्वप्न का एक तरह से अंत है क्योंकि ज्यादातर आई.टी. कंपनियां अमेरिकी कंपनियों के लिए आउटसोर्सिंग करती है। भारतीय उद्योग जगत को अब सूचना-तकनीक का देश के अंदर अधिक विस्तार करने की । उसने अंत मे अपने कदम पीछे हटा लिए थे। बहरहाल, ओबामा का यह फैसला भारतीय युवाओं के आई.टी. स्वप्न का एक तरह से अंत है क्योकिं ज्यादातर आई.टी. कंपनियां अमेरिकी कंपनियो के लिए आउटसोर्सिंग करती हैं। भारतीय उधोग जगत को अब सूचना तकनीक का देश के अंदर अधिक विस्तार करने की नई रणनीति पर सोचना होगा तथा साथ ही रोजगार में नए तथा आकर्षक विकल्पों पर भी विचार करना होगा। फिलहाल यह भारत के युवाओं के लिए झटका है जिससे उबरने में उन्हे समय लगेगा।
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